जब मैं जवान हुई तब मुझे भी और लड़कियों की तरह चुदवाने की इच्छा होती थी। पर हमारी सहेलियों में से एक के साथ प्रेग्नेन्सी का हादसा हो गया तब से मैं बहुत डर गई थी। वो पूरे कॉलेज में बदनाम हो गई थी और फिर उसने कॉलेज छोड़ दिया था। आजकल वो बंगलोर में पढ रही है और होस्टल में रह रही है। मैं इस हादसे के बाद से अपने हाथ से ही धीरे धीरे कर लेती थी।
मेरी सहेलियों ने मुझे antarvasnastory2.in साईट बताई, तब से मैं रात को इसे अकेले में देखती हूँ और मेरे मन की इच्छा के ही अनुरूप इसमें उत्तेजक कहानियाँ पढ़ने को मिल जाती है। इसको पढ़ने से मेरी रातें रंगीन हो उठती हैं, हां कुछ देर तो मैं वासना में तड़पती रहती हूँ और फिर अंगुली घुसेड़ कर पानी निकाल लेती हूँ। सच में इसमें बड़ा सुख मिलता है। इसके लिये मैं धन्यवाद देती हूँ।
मेरा बॉय फ़्रेन्ड अक्सर मुझे चुदवाने के लिये कहता है, पर डर के मारे मैं उसे मना कर देती हूँ। पर शायद उसे एक दिन मौका अन्जाने में मिल गया। घर में कोई नहीं था और विनोद अचानक ही घर पर आ गया। उसे मैंने अन्दर बैठाया और उसकी मेहमानवाजी की।
पर जैसे ही उसे पता चला कि मैं घर में अकेली हूँ, उसने मुझे कहा ” स्वाति आओ, अकेलेपन का फ़ायदा उठा लें ! प्यार करें, किस करें, अभी यहाँ कौन है देखने वाला !”
मुझे भी लगा कि मौका अच्छा है कुछ थोड़ी चुम्मा-चाटी कर लें तो मजा आयेगा। मैं शरमा तो गई पर इन्कार नहीं कर पाई। मैं उसके पास बैठ गई और हम दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे। होठों को चूसने लगे। उसकी जीभ मेरे मुँह में घुस कर मुझे आनन्दित कर रही थी। मेरे बदन में उत्तेजना भी होने लगी थी। इसी बीच विनोद का लण्ड खड़ा होने लग गया। लगता था वो भी उत्तेजित हो रहा था। सच है जब दो जवान तन आपस में मिलने लगे तो जिस्म जलेगा ही। मेरी चूंचियो में भी कड़ापन आने लगा था, दिल में कसक सी उठने लगी थी, मुझे अजीब सा भी लग रहा था कि मेरे स्तन अभी तक क्यूँ नहीं छू रहा था, क्या बात है … क्यूं नहीं दबा रहा है। मुझे तड़प सी होने लगी। मैंने तड़प के मारे उसका हाथ अपनी छाती पर रख लिया।
“विनोद, आह दबा दो ना ! धीरे धीरे !”
उसने हल्का सा दबा दिया। मेरे शरीर में जैसे आग सी लग गई।
“जोर से … आह … !” अब उसने मेरे बोबे ही क्या मेरे पूरे शरीर को दबाना और मसलना आरम्भ कर दिया। मेरे मुख से सिसकारियाँ निकल पड़ी। मेरी चूत में से पानी चू पड़ा। उसने मेरे कुर्ते में नीचे से हाथ डाल दिया और जांघे सहलाता हुआ, चूत तक पहुंचने लगा। जैसे ही उसके हाथ ने मेरी चूत को छुआ मुझे एक झटका सा लगा। मेरा बदन पिघलने लगा। मेरी टांगें स्वत: ही खुलने लगी।
हाथ को चूत तक पहुंचने का रास्ता देने लगी। जैसे ही उसके हाथ ने मेरी चूत को सहलाया, उसकी अंगुली मेरी चूत के रस से गीली हो गई। अंगुली का जोर लगते ही मेरी चूत का दाना छू गया, और अंगुली चूत के द्वार तक पहुंच गई। दाना छूते ही मेरे बदन में जैसे बिजलियां कौंध गई। मैं कांप गई। मैंने तुरन्त उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। उसे सिर हिला कर मना किया।
“स्वाति, ये क्या ? मत रोको … क्या तुम्हें मजा नहीं आ रहा है ?”
उसके व्याकुल स्वर ने एक बार तो मुझे भी विचलित कर दिया। लगा कि चूत खोल कर उसका लण्ड भीतर समा लूँ।
” हाय मेरे विक्की, डर लगता है, ऊपर से ही कर लो ना, मुझे चाहे पूरा मसल दो !”
उसने भी मेरा डर समझा, और अपने लण्ड पर मेरा हाथ रख दिया। मैंने भी उसे निराश नहीं किया और उसका लण्ड थाम लिया। उसका लण्ड बड़ा और मोटा लग रहा था। मन में आया कि चुदवा लूँ, बाद में देखा जायेगा … पर नहीं, अभी नहीं। पर लण्ड के दर्शन को मन मचल उठा।
“इसे बाहर निकाल दो, एक बार देख लूँ !” मेरा मन ललचा गया।
विनोद ने अपना पेन्ट नीचे सरका दिया और अंडरवियर नीचे कर ली। उसका गोरा और बड़ा सा लण्ड बाहर आ गया। उसे देखते ही मेरे मन में उसे अन्दर लेने को मन तड़प उठा। मैंने प्यार से उसे पकड़ लिया और चमडी खींच कर सुपाड़ा बाहर निकाल लिया। लण्ड की सुन्दरता मेरे मन में घर गई, ये पहला लण्ड था जो मैंने देखा था, भरपूर जवान, अकड़ा हुआ, फ़ुंफ़कारता हुआ। उसके टिप्स पर निकली हुई दो चिकनी बूंदें।
“हाय विनोद, मेरे शरीर में इसे समा दो, मुझे निहाल कर दो, मुझे चोद दो !” मेरे मुख से अचानक ही ये सब निकल पड़ा।
“चुप, कहाँ से सीखा ये गाली, ये प्यार की पवित्र भावना है, वासना नहीं !”
“सॉरी, यार, मेरे मन में थी सो कह दिया, पर चोदना गाली तो नहीं होती है, ये तो लण्ड को चूत में डाल कर अन्दर बाहर हिलाने से मजा आता है न, उसे कहते हैं, मेरी सहेलियाँ तो ऐसे खूब बोलती हैं !”
” प्लीज ऐसे नहीं कहो, मेरी हालत खराब हो जायेगी।” वो मेरी बातों से ही मस्त होता जा रहा था। मेरी तड़प बढ़ गई, मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने भी अपना सलवार कुर्ता उतार डाला और नंगी हो गई। मुझे नंगेपन का अह्सास होने से मन में तरंगे उठने लगी। जिस्म कंपकंपाने लगा। मुझ पर वासना पूरी सवार हो चुकी थी। विनोद भी आपे से बाहर हो रहा था। मेरे से वो चिपक कर मेरे अंगो को मसलने और दबाने लगा। मुझे अचानक ही लगने लगा कि अगर मैं चुद गई तो मैं प्रेगनेन्ट हो जाऊंगी और … और … फिर। पर मैं क्या करूँ ??? मेरा मन तड़प उठा, मेरे दिमाग में और मेरे मन में अलग अलग विचार उठने लगे। आखिर में दिमाग की जीत हुई और मैंने तुरंत फ़ैसला ले लिया कि बस मस्ती ही करना है।
“विनोद, मुझे लिटा दो और मेरी चूत चाटो … और ऐसी चाटो कि मैं मस्त हो जाऊँ !” मेरे दिल में कुछ करने की तीव्र इच्छा होने लगी। मुझे ये तरीका बेह्तर लगा। यूँ तो मैं अंगुली का प्रयोग करती हूँ, पर अब तो मेरे पास एक मर्द है, चूस चूस के मेरा पानी निकाल देगा।
विनोद ने मुझे गोदी में उठा लिया और पलंग़ पर लेटा दिया। वो स्वयं भी चूत की तरफ़ मुँह करके करवट पर लेट गया। मेरी दोनों टांगों के बीच उसने अपना चेहरा छुपा लिया और मुँह को मेरी चूत से सटा लिया। उसकी जीभ लपलपा उठी, मैंने भी अपनी चूत का जोर उसके मुँह पर लगा दिया। मैंने अपनी एक टांग उठा कर उसकी कमर में डाल दी और चूत का द्वार खिल कर उसके होंठो से लग गया। उसने भी अपनी एक टांग उठा कर मेरी कमर में मोड़ कर लपेट ली।
पर … मैं तो भूल ही गई गई थी कि इससे तो मेरी गाण्ड का छेद भी उसकी नजरों के सामने आ गया था। फिर … मुझे छेद पर ठण्डक सी लगी, उसने मेरी गाण्ड के छेद पर थूक लगा दिया था और उसकी एक अंगुली मेरी गाण्ड के छेद को सहलाने लगी थी, मुझे बड़ा भला लग रहा था। गुदगुदी सी हो रही थी। उसकी अंगुली अब धीरे से छेद में उतर गई। मुझे अंगुली के घुसते ही बड़ा मजा आया। मुख से सिसकारी निकल गई।
उसका लण्ड मेरे मुख के सामने खड़ा हुआ मुझे न्योता दे रहा था। मैंने उसका लण्ड धीरे से अपने मुख में ले लिया और उसे दांतो से हल्के हल्के चबाने लगी। वो और फ़ुफ़कार उठा। विनोद की भी कमर अब थोड़ी थोड़ी हिल कर लण्ड को मुख में अन्दर बाहर कर रही थी। मेरी चूत का बुरा हाल हो रहा था। वो अब जोर जोर से चप चप करके उसे चाट रहा था, चूस रहा था, मेरे दाने को होंठो से खींच रहा था। गाण्ड में उसकी अंगुली अन्दर बाहर हो रही थी और गाण्ड में गोल गोल घुमा कर छेद को चौड़ा कर रही थी। मेरी गाण्ड में मस्ती चढ़ रही थी। लग रहा था कि वो मेरी गाण्ड मार दे अब।
ज़ब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने अपनी चूत उसके मुख से दूर कर ली और उल्टी लेट गई।
“विक्की, मेरी पीठ पर चढ़ जाओ और मुझे मस्त कर दो !” मैंने उसे गाण्ड चोदने का न्योता दे डाला।
उसने मेरी चूत के नीचे तकिया लगाया ताकि मेरी गाण्ड ऊपर की ओर हो जाये। वो मेरी पीठ पर चढ़ गया और उसने मेरी चूतड़ों की गोलाइयों को फ़ैला दिया। मेरी गाण्ड का छेद उसे साफ़ दिखने लगा। उसने पास में पड़ी क्रीम की डिबिया उठाई और छेद में उसे अन्दर बाहर लगा दी। अब उसने धीरे से अपना तना हुआ लण्ड, सुपाड़ा खोल कर छेद पर रख दिया और जोर लगाने लगा।
लण्ड को अन्दर जाने में कोई तकलीफ़ नहीं हुई। मेरी गाण्ड में हल्का सा दर्द हुआ। मुझे बड़ा सा लण्ड मेरी गाण्ड में फंसा हुआ महसूस होने लगा, जैसे कि कोई नरम सी कड़क सी चीज़ गाण्ड में फ़ंस गई हो। उसने जोर लगा कर अन्दर घुसाने लगा, मेरे मुख से चीख सी निकल गई। पर वो जोश में था, उसका जोर बढ़ता ही गया।
क्रीम लगाने से मुझे उतनी तकलीफ़ तो नहीं हुई, फिर भी दर्द तो तेज हुआ ही। पर उसके धक्कों ने जल्दी ही मुझे मेरा दर्द भुला दिया। शायद इसका कारण था कि मैं अकेले में मोमबत्ती को गाण्ड में अक्सर घुसा लेती थी और मजे करती थी। आज तो लण्ड असली था, और उसका अहसास बिल्कुल अलग था। नरम सा पर लोहे जैसा कड़क, मेरे पूरे छेद में चिकनाई के साथ नरमाई के साथ, चुदाई का मजा दे रहा था।
उसके दोनों हाथ अब मेरी दोनों चूंचियो पर थे और उन्हें मसल कर मुझे दुगना मजा दे रहे थे। मेरी चूत भी आनन्द के मारे पानी छोड़े जा रही थी। मेरे दोनों पांव पूरे खुले हुए थे। उसका लण्ड अब सटासट अन्दर बाहर आ जा रहा था। मुझे गाण्ड चुदाई में ही इतना आनन्द आ रहा था कि लगा कि वो मेरी गाण्ड रोज मारे। पर अचानक उसका लण्ड बाहर तो आया पर वो गाण्ड में नहीं बल्कि चूत में घुस गया। मुझे अन्दर हल्की सी तकलीफ़ भी हुई, मैं तड़प कर उसे हटाने लगी, उसका लण्ड बाहर निकालने लगी और अन्त में सफ़ल भी हो गई।
“ये क्या कर रहे थे तुम? अगर मेरी झिल्ली फ़ट जाती तो? मैं प्रेगनेन्ट हो जाती तो !” मेरा सारा नशा काफ़ूर हो गया और मैं विनोद पर बरस पड़ी।
“स्वाति, पर मजा तो उसी में है, इसमें नहीं है यार” उसने मुझे समझाया।
“पर मुझे तो गाण्ड चुदवाने में ही बहुत मजा आ रहा था, तुमने सब मजा बिगाड़ दिया।”
“सॉरी, यार मैं तुम्हें ऊपर से ही रगड़ देता हूँ, मस्त कर देता हूँ, बस … अब खुश ?”
“लव यू विक्की, मुझे मंजिल तक ले जाओ, और मैं भी तुम्हें मंजिल तक पहुंचा देती हूँ, पर प्लीज, मुझे चोदना नहीं !” मेरी विनती का उस पर प्रभाव पड़ा। शायद ये भी सोचा होगा कि कहीं ये रिश्ता ही ना तोड़ दे, वो मान गया। उसने मुझे फिर से लेटाया और मेरी चूत का दाना चाटने लगा और मेरे बोबे मसलने लगा।
मैं फिर से वासना की गहराइयों में जाने लगी। मेरे निपल को घुमा घुमा कर मसलने से मेरी उतेजना चरम सीमा तक पहुंचने लगी। मुझे झड़ने जैसा अह्सास होने लगा। मैं विनोद के बाल खींचने लगी। मुख को अपनी चूत पर दबाने लगी। उसका पूरा मुँह मेरे चूत के चिपचिपे पानी से गीला हो गया था। उसकी जीभ मेरी चूत में अन्दर बाहर हो रही थी। मेरा शरीर अब तन चुका था और मेरा पानी निकलने में ही था। मैंने झड़ने के लिये चूत का पूरा जोर ऊपर की ओर लगा दिया और अब … आह रे … मर गई … मेरा रस निकल पड़ा। मेरे शरीर में लहरें उठने लगी और मैं झड़ने लगी। मैंने अपने बोबे पर से उसका हाथ हटा दिया। मेरा रस निकलता रहा, मैं धीरे धीरे निढाल होती गई।
मैंने अधखुली आंखों से विनोद को देखा, उसने अपना चेहरा मेरी चूत से अब हटा लिया था और पंजों के बल बैठा हुआ था। उसका लण्ड वैसा ही कड़क, खड़ा हुआ फ़ुफ़कार रहा था। अब मेरी बारी थी। चूंकि मैं झड़ चुकी थी इसलिये मेरा मन उसे जल्दी ही शांत करने हो रहा था। मैंने उसे वैसे ही पंजों के बल पर बैठे रहने कहा और उसका लण्ड धीरे से पकड़ लिया। और उसे मुठ मारने लगी।
उसने भी मेरे बोबे पकड़ लिये और मसलने लगा पर मुझे अब चोट लग़ रही थी। उसे जल्दी ठिकाने लगाने के लिये मैंने उसके लण्ड को मुठ्ठी में जोर से कस लिया और उसे घुमा घुमा कर मरोड़ कर उसका मुठ मारने लगी। वो तड़प उठा और बिस्तर पर लोट गया। पर मैंने उसका लण्ड नहीं छोड़ा, उसे कस कर पकड़ कर मुठ मारती ही रही। वो हाय … हाय करके करवटें लेता रहा। मैं अब उसके ऊपर लेट गई ताकि वो अधिक ना हिले। उसके मुँह को अपना मुँह से भींच लिया और लण्ड को बुरी तरह से मसलती रही।
“अरे अब छोड़ दे, बस, मेरा हो गया है … हाय रे … बस कर … !” लगभग वो अब चीख सा उठा।
उसकी पिचकारी छूट पड़ी, और वीर्य ऊपर उछल कर बाहर आ गया। मेरा हाथ तर होने लगा। भीगे हुए हाथ से मैं अब हौले हौले उसके लण्ड को निचोड़ने लगी और उसे खींच खींच उसका बचा हुआ रस निकालने लगी। अब वो पूरा झड़ चुका था। उसके वीर्य को उसके ही पेडू पर और पेट पर मैंने मल दिया था, उसकी गोलियां और गाण्ड तक उसे मल दिया था।
“मजा आ गया स्वाति, तुम तो खूब मुठ मार देती हो … देखो मेरा क्या हाल कर दिया।”
“और तुम भी तो देखो, मुझे कितना मजा आया … विक्की तू ऐसे ही मुझे मस्त कर दिया कर, चुदाई में तो डर लगता है।”
हम दोनों ने आपस में लिपट कर प्यार किया और अपने कपड़े पहनने लगे।
मेरे मन का डर कब जायेगा, शायद कभी नही। मैं डर के मारे कभी भी नहीं चुद पाऊंगी। शादी के बाद ही ये डर जायेगा, पर हाय रे जाने कब होगी मेरी शादी