एक तलाकशुदा के लिए मेरा इस्तमाल – Antarvasnastory2.in

दोस्तों पिछले दिनों छपी मेरी एक कहानी पढ़ने के बाद मुझे ऐसे तो ढेरों मेल आए, पर एक आलम साहब का मेल मुझे खास आकर्षित कर गया जो मेरा संपर्क नम्बर चाहते थे। वजह कुछ अधिक सीरियस थी, बहरहाल मैंने थोड़ी टाल-मटोल के बाद उन्हें मेरा नम्बर दिया और फिर बात-चीत शुरू हुई। वो मुझसे किसी सिलसिले में मुलाकात करना चाहते थे, मैंने अपनी एहतियात के लिए कुछ शर्ते रखी और फिर उन्हें मुलाकात के लिए बुला लिया। वो बाकायदा मेरे यहाँ आकर मुझे मिले। उनसे जो बातचीत हुई, वो तो काफी लम्बी थी। मगर जो सीरियस बात थी वो पेश कर रहा हूँ।

आलम साहब“ मैंने आपकी कहानी पढ़ी, अच्छी थी मगर जो बात मुझे आप तक खींच लाई, वो ये थी कि मैं एक समस्या में हूँ और मुझे लगता है कि आप मेरी मदद कर सकते हैं। दरअसल मुस्लिम होने की वजह से मेरी आप से बात करने की हिम्मत हुई वरना मैं शायद कभी ऐसा सोच भी नहीं पाता।

मसला यह है कि मेरी एक छोटी बहन है जिसकी शादी एक साल पहले हुई थी, लेकिन अभी दो महीने पहले उसके पति ने उसको तलाक दे दिया और अब वो तलाकशुदा के रूप में मेरे घर ही रह रही है। मेरे माँ-बाप की हम दो ही औलादें थीं, अभी इस वक़्त मेरे घर में मेरी बीवी समीना के सिवा दो बच्चे काशिफ और समीर ही हैं और अब मेरी बहन ज़ोहरा भी साथ ही रहती है।

समस्या यह है कि अभी वो सिर्फ 20 साल की है और यह उम्र कोई सब्र करके बैठ जाने वाली नहीं होती। उसकी उमंगें, उसकी जिस्मानी ख्वाहिशें ठण्डी तो नहीं पड़ जाएँगी इस उम्र में और उसका जो शौहर था उस से उसको महर में बड़ी रकम और कुछ ज़मीन भी मिली है वो सब अब मेरी बहन का ही है।

लिहाज़ा अब जो करोड़ से भी ऊपर की जायदाद है, वो सब उसी की है और यह बात खानदान, रिश्तेदारी और मोहल्ले के ढेरों लोग जानते हैं और वो ज़ोहरा पर नज़रें गड़ाए बैठे हैं। अब जवान लड़की है, किसके बहकावे में आ जाए कहा नहीं जा सकता और फिर क्या अंजाम हो सकता है, उसका खुदा जाने.. क्योंकि जो पैसे के लालच में उससे शादी करेगा, वो आगे कुछ भी कर सकता है।

मेरी समझ में ज़ोहरा को बचाने का एक ही रास्ता है, आखिर जिस हाल में वो है उसमें उसके जिस्म की भूख ही तो उसे किसी के पास ले जाएगी। मैं जानता हूँ कि आपको सुन कर अजीब लगेगा लेकिन मैं सोचता हूँ कि अगर मैं ही उसके लिए यह इंतज़ाम कर दूँ तो शायद उसके कदम बहकने से बच जाएँ और वो किसी बुरे अंजाम से सुरक्षित रहे। आगे देखा जाएगा कि उसके लिए और क्या किया जा सकता है, लेकिन इस वक़्त तो मैं आपसे ही यह उम्मीद लेकर आया हूँ कि इस सिलसिले में आप मेरी मदद करेंगे। आपकी मदद के बदले ऐसा नहीं कि मैं आपको कुछ दूँगा नहीं, आप कोई उजरत न लेना चाहें तो भी मैं अपनी तरफ से तो ज़रूर ही करूँगा। बस आपको अपना घर छोड़ कर मेरे यहाँ रहना होगा। अगर आपकी नौकरी की वजह से कोई प्रॉब्लम है तो मैं वहाँ नौकरी का भी इन्तजाम कर दूँगा।

बताइये, आप मेरी मदद करेंगे या मैं मायूस होकर वापस लौट जाऊँ?”

मैंने सोचने के लिए एक दिन का समय माँगा और फिर एक दिन बाद मैंने उन्हें फैसला सुना दिया कि मैं उनके साथ ही चल रहा हूँ। मैंने कुछ जॉब की समस्या अपने घर में बता कर अपनी तैनाती उनके घर में करली थी और मैं चुदायी करने के लिए वहाँ शिफ्ट हो गया था।
और इस तरह मैं उनके घर में आ गया।

आलम साहब के घर मैं उनके साथ ही करीब दस बजे पहुँचा था, जो कि दरिया गंज में था। आलम साहब का घर यूँ तो एक मंजिला ही था लेकिन ऊपर एक कमरा, बरामदा भी बना हुआ था जो अब मेरे काम आने वाला था। साइड की दीवारें इतनी तो ऊंची थी कि सड़क से कुछ न दिखे, बाकी आस-पास के ऊंचे मकानों के छतों से तो खैर देखा जा सकता था, लेकिन ऐसे बड़े शहरों में फुर्सत ही किसे रहती है।

आलम साहब की उम्र करीब चालीस की रही होगी तो उस लिहाज से ज़ोहरा और उनके बीच काफी बड़ा अंतर था। कियूंकी आलम और ज़ोहरा के बीच के भाई बहन बचपन में ही मर गए थे लेकिन उनकी बीवी समीना उनके आस-पास की ही लगीं, वो और ज़ोहरा बाकी तो दिखने में समान ही थीं लेकिन चेहरे से उम्र का अंतर पता चलता था। जहाँ ज़ोहरा के चेहरे पर मासूमियत थी वहीं समीना के चेहरे पर परिपक्वता झलकती थी। बाकी चूचियों और चूतड़ों का आकार एक सा था। कमर लेकिन ज़ोहरा की कम थी लेकिन उसके ढीले कपड़ों से कुछ पता नहीं चलता था, चेहरे दोनों के खूबसूरत थे।

दोनों बच्चे 10 और 8 साल के थे और सीधे-सादे से थे। उन दोनों औरतों में से जहाँ समीना ने मेरा स्वागत अजीब सी बेरुखी से किया वहीं ज़ोहरा ने तो मुझे जैसे देखना भी गवारा न किया। ऐसा लगा ही नहीं जैसे मेरे आने से उसकी सेहत पर कुछ असर पड़ा हो, आलम भाई के मुताबिक समीना को इस बात की खबर नहीं थी कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ। उसके और बाकी घर के लोगों की नज़र में मैं उनका बस एक किरायेदार था, जो अब उनके साथ ऊपर ही रहने वाला था और जिसका नाश्ता-खाना भी उन्हें ही करके देना था और उसकी कीमत लेनी थी।

बहरहाल मैंने वहाँ रहना शुरू कर दिया और आलम भाई की बहन पर डोरे डालने शुरू किये। मैं सुबह जब तक घर रहता, इसी कोशिश में रहता कि किसी तरह उसे आकर्षित कर पाऊँ और शाम को जब घर आता तो सोने तक इसी कोशिश में लगा रहता और इसके लिए आलम भाई के बच्चों का सहारा लेता जो धीरे-धीरे मुझसे घुलने-मिलने लगे थे।

लेकिन मैंने पाया कि समीना मेरी कोशिशों का जनाज़ा निकल देती थी, उसकी आँखों में अजीब उद्दंडतापूर्ण लापरवाही रहती थी और वो सीधे तो मुझसे कुछ नहीं कहती लेकिन असके अंदाज़ से लगता था कि मुझे पसंद नहीं करती थी और ज़ोहरा पर तो जैसे कोई असर ही नहीं पड़ता था, न पसंद और न ही नापसंद।
इसी तरह जब हफ्ता गुज़र गया और गाड़ी आगे न बढ़ी तो एक दिन मैंने अपनी सीमा लांघने की ठानी।

मैंने अक्सर पाया था कि अपने धुले कपड़े वह लोग ऊपर ही सुखाते थे और अब मैं पहचानने भी लगा था के कौन से कपड़े किसके थे, तो एक दिन मैंने ऊपर फैली ज़ोहरा की सलवार के नीचे छुपी उसकी पैंटी उठा ली। मैं पहले भी चेक कर चुका था कि दोनों ननद-भाभी अपनी चड्डियाँ अपनी सलवार या कुर्ते के नीचे छिपा कर सुखाती थीं और मैंने जल्दी से मुठ्ठ मार कर सारा माल उसमें पोंछा और उसे वापस उसकी जगह टांग दिया।

शाम के अँधेरे में ज़ोहरा आई और अपने कपड़े लेकर चली गई, लेकिन थोड़ी ही देर में हंगामा मच गया।
वो धड़.. धड़ करते गुस्से से आगबबूला होती ऊपर आई और अपनी चड्डी मेरे मुँह पर फेंक मारी।
“यह क्या है?” उसकी आँखें सुर्ख हो रही थीं।

“क्या है?” जानते हुए भी मैंने अनजान बनने की कोशिश की।
उसने मेरे हाथ से चड्डी छीनी और उसमें लगे वीर्य के नम दाग दिखाते हुए चिल्लाई, “यह क्या है?”
“मुझे क्या पता क्या है… ! तुम्हारी चीज़ है तुम जानो।”
“तुम्हारा दिमाग ख़राब हुआ है, मैं समझती थी कि कोई शरीफ इंसान हो, इसी लिए भाई ने रखा है लेकिन तुम तो एक नम्बर के कमीने हो.. ये गंदगी करके मेरे कपड़ों में पोंछ दिया, शर्म नहीं आती…!” वह गुस्से में जाने क्या-क्या बोलती रही और मैं सुनता रहा !

फिर वो रोती हुई नीचे चली गई और मैं शर्मिंदा हो कर रह गया। नीचे उसके रोने की आवाज़ें आती रहीं और मैं सुनता रहा। मुझे लग रहा था कि अब समीना आएगी मुझे ज़लील करने लेकिन वो नहीं आई। फिर जब असलम भाई आए तो उनसे दास्तान बताई गई और वो उनके हिसाब से मुझे समझाने ऊपर आए।

और बोले“वो यह सब सोच भी नहीं सकती थी इसलिए ऐसे रियेक्ट किया लेकिन यकीन करो कि आज रात में जब वह सोयेगी तो उसका दिमाग इसी में अटका रहेगा और कल तुम्हें वो किसी और नज़र से देखेगी।”
“और भाभी?”
“उसकी फ़िक्र मत करो, वो जैसी भी है मुझसे बाहर नहीं जा सकती।”
इसके बाद बात खत्म और मैं अगले दिन के इंतज़ार में।

अगली सुबह जब वह ऊपर कपड़े फैलाने आई तो मैं जानबूझ कर उसके सामने गया। उस वक़्त मैं सिर्फ चड्डी में था और मेरा उभार साफ़ प्रदर्शित हो रहा था। उसने मुझे देखा, नीचे देखा और बिना कोई रिएक्शन दिए भावहीन चेहरा लिए कपड़े फैला कर नीचे चली गई।

इसके बाद तो मैंने भी ठान लिया कि अब ये रोये या लड़े लेकिन मैं इसके सामने ऐसे ही रहूँगा और अक्सर तब, जब वो कपड़े फैलाने या उतारने आती तो मैं उसके सामने चड्डी में ही रहता और यहाँ तक कि अपना सामान भी टाइट ही रखता कि ऊपर से साफ़ पता चले।

मैंने एक बात तो महसूस की कि अब वो वैसी बेरूख सी नहीं लगती जैसे पहले लगती थी लेकिन अपनी दिलचस्पी किसी तरह ज़ाहिर भी नहीं करती थी।
एक शाम मैंने फिर मुठ्ठ मार कर उसकी चड्डी में पोंछ कर टांग दिया और अपने कमरे की खिड़की से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा।

उसने जब कपड़े समेटे तभी महसूस कर लिया कि मैंने फिर वही हरकत की थी लेकिन इस बार उसने नीम अँधेरे में चड्डी को गौर से देखा, फिर मुड़ कर मेरे कमरे की दिशा में देख कर मेरा अंदाज़ा लगाया और फिर चड्डी को नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी और सूंघते हुए ही नीचे चली गई। मैंने राहत की मील भर लम्बी सांस ली कि मेरा मिशन अब सफल होने वाला था।

दो दिन बाद मुझे अपने कमरे के बंद दरवाज़े के नीचे एक चिट्ठी पड़ी मिली। जिसमे लिखा था:

“मैं भी वही चाहती हूँ जो तुम चाहते हो लेकिन मेरी शर्म मुझे ऐसा करने से रोकती है। आज शाम सभी लोग फ़िल्म देखने जाने वाले हैं, मैं कोई बहाना करके घर रुक जाऊँगी, तुम आओगे तो दरवाज़ा खुला मिलेगा, मैं अपने कमरे में रहूँगी लेकिन बिल्कुल अँधेरे में, मेरी हिम्मत नहीं कि मैं रोशनी में ऐसा कर सकूँ। तुम्हें भी याद रखना होगा कि अँधेरे को कायम रहने दोगे।”

उस रोज़ काम पर मेरा मन बिल्कुल न लगा और मैं शाम होते ही घर की तरफ भागा, लेकिन फिर भी पहुँचते-पहुँचते सात बज गए।

दरवाज़ा वाकई खुला मिला जो मैंने अन्दर होते ही बंद कर लिया,घर में सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने ज़ोहरा के कमरे की तरफ देखा, अँधेरा कायम था। मैं आहिस्ता से उसके कमरे में घुसा, कपड़ों कि सरसराहट बता गई कि वह मेरे इंतज़ार में थी, बाहर की रोशनी में बेड पर एक साया पसरा दिखा।

मैं आहिस्ता से चल कर उसके पास बैठ गया।

“मैं कब से इस पल के इंतज़ार में था।”

“बोलो मत, वक़्त इतना भी नहीं है।” उसने सरसराते हुए कहा।

फिर मैंने देर करने के बजाय उसे दबोच लिया। वह नागिन की तरह मुझसे लिपट गई। मैंने अपनी गर्म हथेलियों की छुअन से उसकी चूचियाँ और कमर सब रगड़ डाली। उसने भी बड़ी बेकली से मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन की शुरुआत हो गई।

मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुँह में दे दी जिसे वह बड़ी मस्ती में चूसने लगी। फिर अपनी ज़ुबान उसने मुझे दी तो मैंने भी उसके होंठ और ज़ुबान जी भर के चूस लिए।

मेरा एक हाथ उसकी दाहिनी चूची पर रेंग रहा था और दूसरा उसके बालों को थामे था।

फिर मैंने उसे खुद से अलग किया।

“कपड़े उतारो?”

उसने कोशिश नहीं की, मैंने ही जल्दी-जल्दी उसके सारे कपड़े उतार फेंके, यहाँ तक कि चड्डी भी न रहने दी और फिर खुद के भी सारे कपड़े उतार डाले।

अब बेड पर हम दोनों नंग-धडंग एक-दूसरे से लिपटने लगे, मैं उसे बुरी तरह चूम रहा था चुभला रहा था और वो उसी बेकरारी से मुझे चूम कर जवाब दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की प्यासी हो और आज सारी प्यास बुझा लेना चाहती हो।

उसकी नरम-नरम चूचियाँ.. उसकी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही मुलायम थीं, शायद वैधव्य में अपने हाथों से ही मसलती रहती थी लेकिन निप्पल मज़ेदार थे और किशमिश जैसे मस्त थे जिन्हें चूसने में मज़ा आ गया।

जिस वक़्त मैं एक हाथ से उसके एक चूचे को चूस रहा था और दूसरे को मसल रहा था, वह पैरों से मुझे जकड़ने की कोशिश करती, मेरे बालों को मुट्ठियों में भींचे थी और सिसकारते हुए अपने हाथ से ही अपनी चूची मेरे मुँह में ठूँसने को ऐसे तत्पर थी, जैसे खिला ही देना चाहती हो।

चूचियों को चूसते हुए मैंने अपना घुटना उसकी जांघों के जोड़ पर लगाया तो चिपचिपा हो गया, तब मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को छुआ तो वहाँ से कामरस की धारा बह रही थी।

अब उसकी चूची छोड़ कर मैं उसे चूमते हुए नीचे सरका और वहीं रुका जहाँ उसके कामरस के ख़रबूज़े जैसी महक मेरे नथुनों से टकराई। मैंने वहीं मुँह घुसा दिया। अब ज़ुबान से जो कामरस चाटना शुरू किया तो उसकी सीत्कारें और तेज़ हो गई और बदन में ऐंठन पड़ने लगी। उसकी कलिकाएँ मध्यम आकर की थीं, जिन्हें मैं ज़ुबान और अपने होंठ से दबा के पकड़ कर खींचने लगा और साथ में उसके क्लिटोरिस हुड को भी छेड़े जा रहा था और वो किसी नागिन की तरह मचलने लगी थी।

फिर मैंने अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके गीले छेद में अन्दर सरका दी, वह एकदम से तड़प उठी और उसके मुँह से एक ज़ोर की ‘आह’ जारी हुई।

मुँह से लगातार उसकी चूत पर हमला करते मैंने अपनी ऊँगली अन्दर-बाहर करनी शुरू की तो उसकी कराहें और तेज़ हो गयीं। उसने एक हाथ से बिस्तर की चादर दबोच ली थी, तो दूसरे हाथ से मेरे सर के बाल नोचे जा रही थी।

जब मुझे लगा कि अब वो जाने वाली है, तो मैंने मुँह हटा लिया और ऊँगली भी निकाल ली। ऐसा लगा जैसे उसकी जान निकल गई हो, पर जल्दी ही मैंने उसकी खुली बुर के छेद पर अपना लंड रख कर अन्दर सरका दिया। उसने मुझे दबोचना चाहा लेकिन मैंने उसे दूर ही रखा और बाकायदा उसकी टांगों के बीच बैठ कर दो तीन बार में लंड गीला कर के पूरा अन्दर ठोंस दिया।

वह होंठ भींचे ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी और मैंने उसके पांव पकड़ कर धक्के लगाने शुरू किये। ऐसा लग रहा था जैसे हर धक्के पर उसके अन्दर कोई करेंट प्रवाहित हो रहा हो। अपनी तरफ से वह कमर उचका-उचका कर हर धक्के का जवाब देने की कोशिश कर रही थी।

फिर उसी पोजीशन में वह ऐंठ गई और मुझे अपने ऊपर खींच कर दबोच लिया और कांप-कांप कर ऐसे झड़ने लगी, जैसे बरसों का दबा लावा अब फूट-फूट कर निकल रहा हो।

पर अभी मेरा नहीं हुआ था, मैंने उसे फिर से चूमना, सहलाना शुरू किया और लंड बाहर निकाल कर फिर अपनी ऊँगली से उसकी कलिकाओं को छेड़ने लगा और चूचियों को चूसने लगा। जल्दी ही वह फिर तैयार हो गई और मैंने इस बार उसे बेड से नीचे उतार लिया।

एक पांव नीचे और एक पांव ऊपर और इस तरह हवा में खुली चूत में मैंने अपना लंड ठूंस कर उसके नरम गद्देदार चूतड़ों पर, जो धक्के मारने शुरू किये, तो उसकी ‘आहें’ निकल गईं और जल्दी ही वह खुद भी अपनी गाण्ड आगे-पीछे करके सहयोग करने लगी।

इसी तरह वह सिस्कार-सिस्कार कर चुदती रही और मैं हांफते हुए चोदता रहा और जब लगा के अब निकल जाएगा तो लंड उसकी बुर से बाहर निकाल कर उसके चूतड़ पर दबा दिया और जो ‘फच-फच’ करके माल निकला, वह उसके चूतड़ों पर मल दिया।

फिर दोनों बिस्तर पर गिर कर हाँफ़ने लगे।

“सुनो, मैं बिना गाँड मारे नहीं रह सकता। तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, दर्द हो या छेद फट ही क्यों न जाए मैं बिना मारे छोड़ूँगा नहीं।”

उसने कोई जवाब नहीं दिया।

वह पड़ी रही और मैं उसी हालत में उठ कर कमरे से निकला और रसोई में आ गया। तेल ढूंढने में ज्यादा देर न लगी, मैं उसे लेकर वापस उसके पास पहुँचा और उस पर चढ़ कर फिर उसे गरम करने लगा।

थोड़ी ही कोशिश में वह मचलने लगी और बुर जो उसने पोंछ ली थी, वो फिर से रसीली हो गई।

मैंने इस बार सीधे अर्ध उत्तेजित लंड को उसकी बुर में डाला और धक्के लगाने लगा। वह गर्म होने लगी और उसकी बदन की लहरें मुझे बताती रही। जब उसे चुदने में खूब मज़ा आने लगा और मेरा लंड भी पूर्ण उत्तेजित हो गया तो मैंने लंड निकाल कर उसे कुतिया की तरह चौपाया बना लिया और अब तेल में ऊँगली डुबा डुबा कर उसकी गा्ण्ड के कसे छेद में करने लगा।

शुरू में वह कसमसाई पर फिर एडजस्ट कर लिया और य़ू ही एक के बाद दो और दो के बाद तीन ऊँगलियाँ तक उसके कसे चुन्नटों से भरे छेद में डाल दी। जब मुझे लगा कि अब लंड जाने भर का रास्ता बन गया है, तो लंड को तेल से नहला कर मैंने ठूँसना शुरू किया.

जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, वह जोर से कराह कर आगे खिसकी.. लेकिन मैं भी होशियार था। मैंने उसकी कमर थाम ली थी और निकलने नहीं दिया, उलटे तेल की चिकनाहट के साथ पूरा लंड अन्दर ठेल दिया।

“उई ई ई .. अम्मी.. मिई.. ऊँ ऊँ …ओ..!

“बस हो गया, डरो मत, तुम अपने हाथ से अपनी क्लिटोरिस सहलाओ, चूत गरम रहेगी तो मरवाने का भी मज़ा आएगा।”

उसने ऐसा ही किया और फिर जब मैंने उसके गुदाज नरम चूतड़ों पर थाप देते हुए उसकी गाँड़ में लंड पेलना शुरू किया, तो थोड़ी ही देर में उसे मज़ा आने लगा और इसके बाद फिर उसे नीचे चित लिटा कर, फिर उसकी टांगें उठा कर उसके घुटने पेट से मिला दिए तो उसकी गाँड़ का छेद इतना ढीला हो चुका था कि उसने मेरे लंड का कोई विरोध ना किया और आसानी से पूरा अन्दर निगल लिया।

फिर कुछ ज़ोर-ज़ोर के धक्कों के बाद मेरा फव्वारा छूट ही पड़ा और मैंने पूरी ‘ट्यूब’ उसकी गाण्ड में खाली कर दी और उसके बगल में गिर कर हाँफ़ने लगा।

इतनी मेहनत और दो बार के डिस्चार्ज ने इतनी हालत खस्ता कर दी कि होश ही न रहा। होश जब आया जब बाहर घन्टी बजी।

जल्दी-जल्दी दोनों ने कपड़े पहने और मैं ही बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलने पहुँचा, पर ये देख कर हैरान रह गया कि बाहर आलम भाई के साथ उनके दोनों बच्चे तो थे लेकिन उनकी बीवी समीना के बजाय उनकी बहन ज़ोहरा भी मौजूद थी।

“अरे तुम… समीना कहाँ है?”

मेरी एक ठंडी सांस छूट गई और मैंने आहिस्ता से सर हिला कर कमरे की तरफ इशारा किया और जीने से ऊपर बढ़ आया।

मेरे लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कमरे में मेरे लौड़े के नीचे समीना थी और मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन अजीब कमीनी औरत थी कि इतना चुदने के बाद भी हेकड़ी बरक़रार थी और क्या मज़ाल कि उसके चेहरे से ऐसा लगता कि मुझसे चुद चुकी हो।

बहरहाल जो मेरा शिकार थी, वह बीस साल की तलाकशुदा ज़ोहरा, वो वैसे ही नरमी तो दिखा रही थी लेकिन चुदने जैसा कोई इशारा नहीं दे रही थी, उसके चक्कर में ही मैं रात को अपने कमरे का दरवाज़ा खुला रख के ही सोता था कि उसे आने में दिक्कत न हो और अँधेरे में ही अपनी शर्म छुपा कर चली आए।

फिर भाभी की चुदाई के चार रोज़ बाद एक रात ऐसा मौका भी आया… जब रात के किसी पहर मेरी आँख खुल गई। खुलने का कारण मेरे लंड का खड़ा होना और उसका गीला होना था। मैंने अपनी इंद्रियों को सचेत कर के सोचा तो समझ में आया कि कोई मेरे लंड को अपने गीले-गीले मुँह में लिए लॉलीपॉप की तरह चूसे जा रहा था।

मैंने देखने की कोशिश की पर साये से ज्यादा कुछ न दिखा।

अब ऐसी खुली हरकत तो ज़ाहिर था कि समीना ही कर सकती थी, लेकिन मुझे क्या, ननद न सही भाभी ही सही, एक अदद चूत ही तो चाहिए।

मैंने हाथ बढ़ा कर उसे ऊपर खींच लिया।

और उसे जकड़ कर उसके होंठों का रसपान करने लगा।

वो भी मेरे होंठों और ज़ुबान से खेलने लगी, मैंने दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ गूंथनी शुरू की, तो उसकी कराह निकल गई।

“क्या लगा लिया, उस दिन नरम लग रही थी आज तो बड़ी सख्त लग रही हैं?”

मैंने उसके कुर्ते को ऊपर करते हुए कहा।

वह कुछ नहीं बोली।

मैंने उसका कुरता उसके सर से ऊपर करके निकाल दिया और उसकी सलवार भी उतार दी। खुद तो वैसे भी चड्डी में ही सोता था। अब दो नंगे बदन की रगड़ा-रगड़ी माहौल में आग भरने लगी।

थोड़ी देर ब्रा के ऊपर से मैं उसके निप्पल कुचलता रहा और वह हौले-हौले सिसकारती रही, फिर उसके स्पंजी वक्षों को ब्रा की कैद से आज़ाद करके दोनों मटर के दानों जैसे निप्पलों को खींचने, चुभलाने लगा।

फिर मेरे हाथों के इशारे पर वो औंधी लेट गई और मैं उसकी पीठ पर लद कर दोनों हाथ आगे ले जाकर उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी गर्दन मोड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा। उसने भी एक हाथ से मेरा चेहरा थाम लिया था।

इसके बाद मैं नीचे सरकने लगा।

और बिल्कुल नीचे पहुँच कर उसकी पैंटी को नीचे सरका कर उसके नरम-नरम चूतड़ों को चाटने दबाने लगा और पीछे से ही हाथ डाल कर उसकी गर्म भट्टी की तरह दहकती बुर को छुआ तो जैसे वह सिहर गई।

चिपचिपा पानी भरा हुआ था।

मैं उसी हालत में उसे रखे खुद चित लेट गया और अपना मुँह नीचे से उसकी चूत पर ले आया और ज़ुबान से उसकी कलिकाओं से छेड़छाड़ करने लगा।

वह मचलने लगी…

दोनों हाथों से मैंने उसके डबल-रोटी जैसे चूतड़ थाम रखे थे और जब ऊपरी कलिकाओं को काफी गर्म कर चुका, तो ज़ुबान को नुकीला और कड़ा करके उसके छेद में उतार दिया।

वह ‘सिस्स’ करके रह गई।

मैं धीरे धीरे उसे जीभ से चोदने लगा और वह हौले-हौले ‘आह-आह’ करती रही। फिर ऐसा वक़्त भी आया जब वह बुरी तरह मचलने लगी और मुझे नीचे से धकेल दिया, पर करवट न बदली और वैसे ही औंधी पड़ी कराहती रही।

मैं सीधा होकर उसकी पीठ पर चढ़ आया और दाहिने घुटने से उसकी जांघ पर दबाव बना कर उसे इतनी दूर ठेल दिया कि नीचे उसकी बुर खुल सके और फिर हाथ से लंड को पकड़ कर उसके छेद पर रखा और अन्दर ठेल दिया।

वह एकदम से अकड़ गई…

पर मैंने उसे निकलने न दिया और उल्टा हाथ उसकी गर्दन के नीचे से निकाल कर उसके चेहरे को अपनी तरफ करके उसके होंठों से अपने होंठ चिपका कर चूसने लगा, तो दूसरे हाथ से उसकी दाहिनी चूची को भी ज़ोर-ज़ोर से भंभोड़ने लगा।

लंड जब उसके पानी से भीग गया तो बाहर निकाल कर वापस पूरा अन्दर ठेल दिया और उसके नरम गद्देदार चूतड़ों का आनंद लेते हुए उसी अवस्था में धक्के लगाने लगा।

वह पहले ही चरम पर पहुँच चुकी थी, इसलिए कुछ ही धक्कों में उसकी चूत बहने लगी और मेरे लंड को नहला गई। मैं भी रुका नहीं बल्कि उसी हालत में धक्कों की स्पीड बढ़ाता चला गया और आखरी धक्के इतनी ज़ोर-ज़ोर से लगाए कि बेड बुरी तरह हिल कर रह गया। ऐसा हो ही नहीं सकता कि नीचे उसके यूँ हिलने की आवाज़ें न गई हों।

फिर मैं उसकी चूत में ही झड़ गया और उसके चूतड़ों पर अपना पेट कस के सारा माल अन्दर ही निकाल दिया।

आधी रात के वक़्त की यह चुदाई मुझे इतना थका गई कि मेरे होश ही न बजा रहे और पता भी न चला कि मैं कब नींद के आगोश में जा समाया।

सुबह जब आँख खुली तो तबियत में भारीपन था और मन ही नहीं हो रहा था कि काम पर जाऊँ। जैसे-तैसे उठा तो ग्यारह बज चुके थे। बिस्तर झाड़ा तो एक बाली मिली, शायद कल रात की धींगा-मुश्ती में रह गई थी।

उसे लिए नीचे पहुँचा तो सन्नाटा छाया हुआ था और समीना अकेली रसोई में थी। मैं उसके पास पहुँचा तो वो मुझे देखने लगी।

“बाली रह गई थी रात में !” मैंने उसे बाली थमाते हुए कहा।

उसने हैरानी से मुझे देखा और फिर बाली देखने लगी।

“कहाँ रह गई थी?”

“रात में जब तुम ऊपर थी।” मैंने आहिस्ता से कहा कि कहीं ज़ोहरा न सुन ले।

“ओह ! यह मेरी नहीं, ज़ोहरा की है और मैं रात में ऊपर नहीं गई।”

मैं अवाक सा उसे देखता रहा और फिर हैरानी से ज़ोहरा के कमरे की तरफ देखा।

“वह घर नहीं है, बच्चों को लेकर अपनी फूफी के यहाँ गई है ! तो कल रात वह चुदी है तुमसे।”

“कमाल है, जब मैंने उसे समझ कर चोदा तो तुम निकली और जब तुम्हें समझ कर चोदा तो वो निकली। तुम्हें पता है कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ।”

“हाँ, पता है… मेरे लिए।”

“क्या?” मैंने हैरान हो कर उसे देखा।

“हाँ… तुम्हारे भाई साहब आज तक मेरी प्यास नहीं बुझा पाये, बच्चे तो जैसे-तैसे करके हो ही जाते हैं, लेकिन औरत को संतुष्ट कर पाना हर किसी के बस का नहीं होता। कभी गलत संगत में अपनी खराबी कर ली थी।

शादी के बाद से ही यह हाल है कि एक तो ठीक से खड़ा नहीं होता, ऐसा लगता है कि घुसाने के टाइम मुड़-तुड़ कर बाहर ही रह जाएगा, अपनी सील तोड़ने के लिए मुझे खुद बैंगन इस्तेमाल करना पड़ा था और अपनी बुर को इतना ढीला करना पड़ा था कि आलम साहब अपने उस ‘लुंज-पुंज’ से उसे चोद पाएँ लेकिन धीरे-धीरे जब उम्र चढ़नी शुरू हुई तो दूसरी दिक्कत आ गई कि खड़ा हुआ नहीं कि झड़े नहीं। मुद्दतें हो जाती हैं मुझे अपनी प्यास बुझाए और इसी की वजह से मेरे मिजाज़ में भी चिड़चिड़ापन आ गया है।

अब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो चला था, कहाँ तक मैं घर की इज्जत और उनकी मान-मर्यादा का ख्याल रखती। मैं अब बाग़ी होने लगी थी, तभी उन्होंने यह रास्ता निकाला कि कम से कम घर की बात घर में ही रहे।”

“पर उन्होंने तो कहा था के मुझे उनकी बहन के लिए यहाँ रुकना है कि कहीं वो बहक कर खुद का कोई अहित न कर ले।”

“हाँ, उनका मर्दाना आत्म-सम्मान.., मर्द जो ठहरे, अपनी हार सीधे-सीधे कैसे स्वीकार कर लेते और बहरहाल बात तो ज़ोहरा की भी थी, आखिर जायदाद किसे प्यारी नहीं होती, किसी और से सैट हो कर चली गई, तो सब गया हाथ से और यहीं चुदती रहेगी, तो बाहर किसी को देखेगी भी नहीं।”

“उसे पता है कि मैं तुम्हारे लिए लाया गया हूँ?”

“नहीं, पर मैं बता दूँगी कि उसके भाई ने हम दोनों के ही लिए एक मर्द का इंतज़ाम किया है और अब तो वो तुमसे चुद भी चुकी है, तो उसे भला क्या इंकार होगा।”

“पर मुझे झूठ बोल कर यूँ उल्लू बनाना पसंद नहीं आया और इस बात का बदला तो मैं आलम भाई से लेकर ही रहूँगा।”

“कैसे?”

“तुम अब उन्हें फोन लगाओगी और बताओगी के मुझे सब पता चल चुका है और अब मैं तुम्हें अभी ही चोदने जा रहा हूँ और तुम अपनी चुदाई की दास्तान उन्हें फोन पर सुनाओगी और वो फोन नहीं काटेंगे… फोन काटा तो मैं बाहर सब को सच बता कर यहाँ से चला जाऊँगा।”

वह हँसी.. उसके चेहरे पर चमक आ गई।

हाँलाकि मेरी तबियत बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन फिर भी मैं उसे गुसलखाने में पकड़ लाया। फोन उसके हाथ में ही था। उसने नम्बर मिलाया और आलम भाई को बताने लगी। उधर से कोई आवाज़ न आई और मैंने शावर चला दिया, हम दोनों के कपड़े भीग गए।

फोन उसने पानी से दूर ही रखा था, वो फोन पर वो सब बोलती रही जो मैं करता रहा।

मैंने उसके कपड़े उतार दिए और अपने भी…

फिर कम स्पीड में शावर चला कर बहते पानी में उसके भरे-भरे गुब्बारे दबाने, चूसने लगा। उसकी पीठ पर ज़ुबान फिराई और हाथ आगे किए, उसके पेट को सहलाता रहा।

वह फोन पर बताती तो रही, पर जिस क्षण उसे तेज़ आनन्द की लहर कचोटती, उसका स्वर लहरा जाता या चुप हो जाती।

नीचे होते उसके चूतड़ों को चाटने लगा और दोनों मोटी फाँकों को अलग कर के उसकी गांड के छेद में उंगली कर दी। वो सिसक उठी और मैं उसकी टांगों को थोड़ा फैला कर आगे से उसकी पानी से भीगी बुर में मुँह डाल कर उसे मुँह से चोदने लगा और हाथ की उंगली से उसकी गुदा के छेद को। उसके लिए फोन सम्भाल कर बात करते रहना मुश्किल हो गया और आवाज़ लहराने लगी।

जब वह इतनी गर्म हो गई कि उसके लिए बात करना मुमकिन न रह गया तो मैंने अपना मुँह और ऊँगली हटा ली और खुद खड़ा हो गया और उसे नीचे झुका लिया। उसने मेरा इशारा समझने में देर नहीं की। फोन पर बताया कि क्या करने जा रही थी और मेरे लंड को मुँह में ले कर चूसने लगी।

फोन पर उसकी ‘गूं.. गूं.. और चप.. चप..’ आलम भाई को सुनाई दे रही होगी।

जब लंड काफी टाइट हो गया तो मैंने उसे हटा दिया और कमोड पकड़ कर झुका दिया, एक पाँव नीचे फर्श के टाइल पर तो दूसरा कमोड की सीट पर और मैंने पीछे से उसके चूत में अपना लंड सरका दिया। अब वो कुछ और बोलने के काबिल तो नहीं थी बस फोन मुँह के पास रखे ‘आह-आह… ओह’ करती रही और मैं उसके चूतड़ों को पकड़े धक्के पर धक्के लगाता रहा।

इस चुदाई में मैंने कोई और आसन नहीं अख्तियार किया, बस पैर की पोजीशन ही बदलवाई और इसी तरह लगातार धक्के लगाता रहा।

धीरे धीरे मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया और साथ ही वो भी और जिस घड़ी एक तेज़ कराह के साथ हम दोनों झड़े, फोन उसके हाथ से छूट गया और फर्श पर बिखर गया।

मैंने अपने अंतिम पड़ाव पर उसके चूतड़ों में अपनी उँगलियाँ धंसा कर उसे अपने लंड पर ऐसे भींचा था, जैसे उसे खुद में ही समा लेना चाहता हूँ…

उसने भी फोन छोड़ कर कमोड की सीट को दोनों मुट्ठियों में जकड़ लिया और इस तरह हमारी चुदाई संपन्न हुई।

इसके आगे की कहानी आपको ‘ज़ोहरा के साथ वासना भरा सेक्स’ के नाम से सुनाऊँगा…

कहानी से जुड़े रहिए।

मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। man650490@gmail.com

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